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इश्क़ में आजमाईश

ज़रा सी बात थी कि तुम आजमाने निकले
भुगतो अब जो उसके और ठिकाने निकले

गले मिलकर ही उसने गर्दन दबोच ली मेरी
निगाहें थी कहीं उसकी कहीं निशाने निकले

दर्द पाकर, ग़म खाकर, ज़ख़्म सारे दबाकर
मुस्कुराते हुए हम हाल अपना छुपाने निकले

नज़रें मिली दिल धड़का फिर आंसू भी टपके
एक पल के किस्से से   कितने फसाने निकले

जान लुटाने की तमन्ना लिए थे इश्क़ में "राही"
होके रुसवा उसकी महफ़िल से दिवाने निकले

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12 Comments

Abhinav ji

15-Oct-2022 08:38 AM

Very nice

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अनीस राही

15-Oct-2022 12:59 PM

Thanks

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Wahhh बहुत ही खूबसूरत रचना है और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ

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अनीस राही

15-Oct-2022 12:59 PM

बहुत आभार महोदय

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Raziya bano

14-Oct-2022 03:56 PM

Bahut khub

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अनीस राही

15-Oct-2022 01:00 PM

आपका शुक्रिया

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